Articles on One Nation On Election
Letter to editor (Dr Rajeev Bindal, State president BJP HP)
एक देश एक चुनाव राष्ट्रहित में लिया जाने वाला सर्वाधिक महत्वपूर्ण राजनैतिक कदम होगा।
देश के यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र भाई मोदी द्वारा "एक देश एक चुनाव" को लागू करने की घोषणा, भारत के राजनैतिक भविष्य की एक महत्वपूर्ण घटना है और इसे सभी दलों को राजनीति से उपर उठकर देशहित में लागू करने के लिए आगे आना चाहिए। हमने देखा है कि विगत 50-55 वर्षों में पूरे देश के किसी न किसी हिस्से में चुनाव चल रहा होता है और वह चुनाव सरकारों के निर्णयों को बहुत प्रभावित करता है। वोट प्राप्ति की राजनीति, सत्ता तक पहुंचने के लिए वोटों का ध्रुवीकरण करने की मंशा से सभी राजनीतिक दल चुनावों के समय में विभिन्न प्रकार की घोषणाएं करते हुए दिखाई देते हैं। इतना ही नहीं, किसी भी प्रांत में चुनाव चल रहा होता है, ऐसे में सत्ताधारी दल जो दूसरे प्रांतो या देश में सत्ता में रहता है, वह भी देशहित व प्रांतहित में कड़े निर्णय लेने से बचता हुआ दिखाई देता है, क्योंकि सभी राजनीतिक दलों को अपने वोटर को बचाकर रखना और लुभाकर रखना आवश्यक हो जाता है। एक सरकार को कार्य करने के लिए 5 वर्ष का समय मिलता है जिसमें हर साल और साल में दो बार भी प्रांतो में चुनाव होने के कारण देश और प्रांतों का विकास बुरी तरह प्रभावित होता है।
जब भी चुनाव होता है तो भारी-भरकम खर्चा चुनाव पर लगता है। सरकारों को चुनाव आयोग के दिशा-निर्देश पर बड़ी मात्रा में मिलिट्री, पैरा मिलिट्री, पुलिस व होमगार्ड की तैनाती करनी पड़ती है और यह तैनाती चुनाव से एक महीना पहले और चुनाव के एक महीने के दौरान अर्थात दो महीने जारी रहती है, इस पर अरबों रूपये का व्यय होता है। चुनाव करवाने वाली मशीनरी पूरे देश के विभिन्न हिस्सो से आईएएस, आईपीएस व अन्य अधिकारियों को दो महीने पहले ही क्षेत्रों में तैनात कर दिया जाता है। पोलिंग पार्टियों के प्रशिक्षण का काम तीन महीने पहले शुरू हो जाता है और एक-एक प्रांत में हजारों-हजार कर्मचारी, अधिकारी अपने कार्यालयों का, स्कूलों का व अन्य कार्यों को छोड़कर चुनावी कार्य में जुट जाते हैं। इस प्रकार अरबो रूपये का व्यय तो होता ही है परन्तु तीन महीने तक प्रदेश के समस्त विकास कार्य व निर्णय बंद हो जाते हैं।
राजनीतिक पार्टियां चुनाव आने से एक साल पहले प्रांतों में चुनावो की तैयारी शुरू करती है। इस हेतु बड़ी मात्रा में कार्यक्रमो का आयोजन, रैलियों का आयोजन, धरने-प्रदर्शन चलते हैं। इस पर प्रदेश के प्रशासन को सारी व्यवस्थाएं, सुरक्षा व्यवस्था, कानून व्यवस्था बनाकर रखने के लिए करोड़ों-करोड़ों रूपये व्यय करना पड़ता है। प्रशासन का अपना काम इन सभी रैलियों और आयोजनों के कारण प्रभावित होता है। राजनीतिक पार्टियां चुनाव से 6 महीने पहले अपनी गतिविधियों को और तेज करती है और तीन महीने पहले तो प्रदेश के सारे काम केवल और केवल चुनाव तक ही सीमट जाते हैं। इस एक वर्ष में उस प्रांत का सत्ताधारी दल जनहित में कड़े निर्णय नहीं ले पाता। इससे जहां प्रदेश आर्थिक रूप से कमजोर हो जाता है और विकास में पिछड़ता है, वहीं राजनैतिक दल इन चुनावो में करोड़ों-करोड़ों रू० व्यय करने पर मजबूर होते हैं।
यदि हम देश के आजादी के बाद से चुनावी इतिहास पर नजर डाले तो हमें दिखाई देगा कि प्रारंभ के दो दशकों तक देश की लोकसभा व विधानसभाओं के चुनाव एक साथ ही हुए हैं। यहां तक कि स्थानीय निकायों के चुनाव भी लोकसभा व विधानसभाओं के साथ होते आये हैं। 1970 के दशक में कांग्रेस पार्टी के हाथ से जब स्थान-स्थान पर सत्ता की चाबी दूसरी पार्टियों के हाथ में जाने लगी, कांग्रेस पार्टी में भारी मात्रा में विघटन हुआ, देश के बड़े-बड़े नेता कांग्रेस पार्टी से बाहर हुए और उन्होनें अपनी राजनीतिक पार्टियों का गठन किया। उस समय लोकसभा एवं विधानसभाओं के चुनावो में अंतर आना शुरू हुआ।
दक्षिण के श्री कामराज, पश्चिम के मोरारजी देसाई, उत्तर-पूर्व के श्री जयप्रकाश नारायण, उत्तर के श्री चंद्रशेखर जैसे कांग्रेस के नेताओं ने श्रीमती इंदिरा गांधी की तानाशाही से अप्रसन्न होकर अलग-अलग दिशा में निकल गए और पहली बार बड़ी मात्रा में क्षेत्रीय पार्टियों का जन्म हुआ। इसी कड़ी में 1975 की घटना सर्वाधिक महत्वपूर्ण है, जब इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने राज नारायण की अपील पर श्रीमती इंदिरा गांधी के चुनाव को अवैध घोषित किया और प्रधानमंत्री रहते हुए अपनी सत्ता को बचाने के लिए 25 जून 1975 की मध्य रात्रि में श्रीमती इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल लगाकर लोकतंत्र का गला घोंटा और चुनावी प्रक्रियाएं पूरी तरह बंद हो गई और देश में तानाशाही लागू हो गई। 1977 के लोकसभा चुनाव में जनता पार्टी की जीत, 1980 में जनता पार्टी में विघटन और दोबारा से लोकसभा चुनाव और साथ ही विधानसभा चुनावों के कारण अलग-अलग समय पर चुनावो का सिलसिला जो शुरू हुआ, वह अभी तक चला आ रहा है। केन्द्र की सत्ता पर काबिज राजनीतिक पार्टियों ने विशेषतौर पर कांग्रेस पार्टी ने धारा 356 का दुरूपयोग करके अपने राजनैतिक लाभ के लिए चुनी हुई सरकारों को भंग करने का, राष्ट्रपति शासन लगाने का जो सिलसिला शुरू किया, उसने प्रदेशों में होने वाले चुनावों को रोजमर्रा का काम बना दिया जिसके कारण आज आए दिन एक या दूसरे प्रांत में चुनाव होते रहते हैं और देश का विकास प्रभावित होता है।
श्री नरेन्द्र भाई मोदी का वन नेशन वन इलैक्शन, एक राष्ट्र एक चुनाव की घोषणा ने देशभर में एक बहुत बड़ी राजनीतिक बहस शुरू कर दी है कि क्यों न पूरे देश में 5 साल में एक बार लोकसभा एवं विधानसभाओं के चुनाव सम्पन्न हो। ऐसा करने से चुनावी खर्चा बचेगा, सरकारों को 5 साल तक कार्य करने का सुनहरा अवसर प्राप्त होगा। अतः यह निर्णय देशहित का अत्यंत महत्वपूर्ण निर्णय है। सभी राजनीतिक पार्टियों, सामाजिक संस्थाओं को, महत्वपूर्ण लोगों को इस निर्णय के पक्ष में अपना मत बनाना चाहिए।