हिमाचल प्रदेश का धर्मशाला नगर तिब्बती नववर्ष लोसर के उल्लास में डूबा है। हालांकि दुनिया भर में बसे तिब्बती अपने नये साल लोसर की तैयारियों में जुटे हैं। लेकिन धर्मशाला का इस बार कुछ अलग ही नजारा है। यहां तिब्बतीयों के अध्यात्मिक नेता दलाई लामा भी भी इस बार लोसर मनायेंगे।
यहीं वजह है कि धर्मशाला मेकलोडगंज के बाजारों में खासी रौनक है, व तिब्बती अपने घरों को सजाने संवारने में लगे हैं। औपचारिक तौर पर लोसर की शुरूआत 10 फरवरी शुक्रवार को होगी व 12 फरवरी तक इसे मनाया जाता रहेगा। हालांकि चीनी नियंत्रण वाले तिब्बत में यह त्योहार बीस दिनों तक मनाया जाता है।
भारत व दूसरे देशों में रह रहे तिब्बती लोसर के जशन की तैयारियां दस दिन पहले ही से शुरू कर देते हैं। धर्मशाला से सटे मैक्लोडगंज में निर्वासन में रह रहे तिब्बती समुदाय में तिब्बती नववर्ष लोसर को लेकर खासा उत्साह देखा जा रहा है। यहां रह रहे तिब्बती 10 फरवरी से 12 फरवरी तक लोसर पर्व मनाते हैं।
निर्वासित तिब्बतियों द्वारा पारंपरिक ढंग से लोसर पर्व को मनाया जाता है। अलग-अलग दिन तिब्बतियों द्वारा विभिन्न कार्यक्रम प्रस्तावित किए जाते हैं। तीन दिवसीय लोसर पर्व के लिए दस दिन पहले निर्वासित तिब्बती खरीददारी शुरू कर देते हैं।
तिब्बती नववर्ष लोसर के प्रथम दिन को तिब्बती समुदाय के सभी लोग घरों में ही रहते हैं। परंपरा के अनुसार 10 फरवरी तिब्बती परिवारों के बच्चे और पुरुष नहाते हैं व 12 फरवरी को महिलाओं के नहाने की परंपरा है। 12 फरवरी को ही तिब्बती परिवार अपने घरों की साफ-सफाई करके आकर्षक ढंग से सजाते हैं। तिब्बती युवाओं तेन्जिन छवांग, तेन्जिन देदेन, छेरिंग फुंग्चुक ने बताया कि लोसर पर्व का उन्हें साल भर इंतजार रहता है। इस पर्व के दौरान निर्वासित तिब्बती विशेष पूजा अर्चना कर ईष्टदेव से बुरी आत्माओं को घरों से दूर करने तथा उनके घरों में निवास करने की कामना की जाती है।
तिब्बती समुदाय लोसर पर्व के लिए दो माह पहले छांग (देसी मदिरा) तैयार करना शुरू कर देता है। देसी मदिरा का पहले अपने ईष्ट को भोग लगाया जाता है, उसके बाद स्वयं या रिश्तेदारों को आदान-प्रदान किया जाता है। वहीं समुदाय पर्व के दौरान भगवान को चढ़ाने के लिए मैदे से खपस (मटर की तरह दिखने वाले) व्यंजन बनाते हैं।
तिब्बती बुजुर्गों के अनुसार पुराने समय में लोसर पर्व पर भेडा काटा जाता था और उसका सिर ईष्ट देव को चढ़ाया जाता था। अब बदलते दौर में मांस के बजाय समुदाय के लोग मक्खन से बना भेड़ का सिर ईष्टदेव को चढ़ाकर पूजा करते हैं। समुदाय के लोगों का कहना है कि अब भेड़ काटना पसंद नहीं करते हंै, जिसके चलते मक्खन से भेड़ का सिर बनाकर इसे चढ़ाया जाता है।
लोसर पर्व पर मैक्लोडगंज के प्रमुख बौद्ध मठ में विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है। तिब्बत में तो लोसर पर्व का आयोजन 15 से 20 दिनों तक चलता है, लेकिन भारत के विभिन्न हिस्सों में रह रहे तिब्बती तीन दिनों तक इस पर्व को मनाते हैं। इस दिन तिब्बतियों द्वारा भिखारियों को दान दिया जाता है।