सूर्य की पहली किरण के साथ संगम तट गंगा मैया की जय और हर हर महादेव के उद्घोष से गूंज रहा है। भगवान सूर्य को जल देते श्रद्धालु भारत की प्राचीन परंपराओं का ह्रदय से पालन करते हुए पुण्यलाभ कमा रहे हैं।कुम्भ मेला धार्मिक-आध्यात्मिक अनुष्ठानों का एक भव्य आयोजन है, जिसमें संगम-स्नान उन सभी अनुष्ठानों में सबसे महत्त्वपूर्ण है। त्रिवेणी संगम पर, लाखों तीर्थयात्री इस पवित्र कार्य में भाग लेने के लिए एक साथ आते हैं। उनको यह दृढ़ विश्वास है कि संगम के पवित्र जल में स्नान करने से व्यक्ति सभी पापों से मुक्त हो जाता है तथा अपने साथ अपने पूर्वजों को पुनर्जन्म के चक्र से छुटकारा दिलाकर अंततः मोक्ष, या आध्यात्मिक मुक्ति प्राप्त कर सकता है।
संगम-स्नान के अलावा, तीर्थयात्री पवित्र नदी के किनारे पूजा में भी शामिल होते हैं और विभिन्न साधुओं और संतों के मार्गदर्शन में ज्ञानवर्धक प्रवचनों में सक्रिय रूप से भाग लेते हैं।
कुम्भ मेला, मकर संक्रांति (जब सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है) के शुभ अवसर अथवा पौष पूर्णिमा से प्रारम्भ होता है। कुम्भ मेला की सम्पूर्ण अवधि के दौरान पवित्र जल में स्नान करना पवित्र माना जाता है, किन्तु कुछ विशिष्ट तिथियाँ हैं, जो विशेष महत्त्व रखती हैं। इन तिथियों पर विभिन्न अखाड़ों के संत अपने शिष्यों के साथ भव्य जुलूस निकालते है। वे एक भव्य अनुष्ठान में भाग लेते हैं, जिसे 'शाही स्नान' भी कहा जाता है, जो कुम्भ मेले के शुभारम्भ का प्रतीक है। शाही स्नान कुम्भ मेले का मुख्य आकर्षण है, जिसके लिए विशेष प्रबन्ध किये जाते हैं। शाही स्नान के अवसर पर लोगों को शाही स्नान करने वाले साधु-संतो के पुण्य कर्मों एवं और गहन-ज्ञान का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
#एकता_का_महाकुम्भ