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शिमला | किसानों-बागवानों के जीवन में समृद्धि और खुशहाली लेकर आई प्राकृतिक खेती, सुदृढ़ हो रही ग्रामीण अर्थव्यवस्था

Updated on Monday, December 16, 2024 08:16 AM IST

किसानों-बागवानों के जीवन में समृद्धि और खुशहाली लेकर आई प्राकृतिक खेती, सुदृढ़ हो रही ग्रामीण अर्थव्यवस्था

प्राकृतिक खेती करने से लागत मूल्य में औसतन 36 फीसदी कमी दर्ज

3,592 पंचायतों में 1.98 लाख किसान 35 हजार हेक्टेयर भूमि में प्राकृतिक खेती से उगा रहे विविध फसलें

हिमाचल प्रदेश में किसानों को सशक्त और ग्रामीण आर्थिकी को सुदृढ़ करने के लिए राज्य सरकार द्वारा शुरू की गई योजनाओं के सार्थक परिणाम सामने आ रहे हैं। खेती की लागत को कम करने, आय एवं उत्पादकता को बढ़ाने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए प्रदेश सरकार प्राकृतिक खेती को बढ़ावा दे रही है।
प्राकृतिक खेती से जहां मानव और पर्यावरण को रासायनिक खेती के दुष्प्रभावों से बचाया जा रहा है। वहीं खेती की लागत कम होने से ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बल मिल रहा है। प्राकृतिक खेती से किसान-बागवानों की बाजार पर निर्भरता खत्म हो रही है और वह अपने आसपास उपलब्ध संसाधनों का भरपूर प्रयोग खेती में कर रहे हैं।
प्रदेश के सभी कृषि जलवायु क्षेत्रों में किसान-बागवान विविध फसलों व फलों को प्राकृतिक खेती से उगा रहे हैं। प्रदेश राज्य की 3,592 पंचायतों में 1 लाख 98 हजार किसान 35 हजार हेैक्टेयर भूमि में प्राकृतिक खेती से विविध फसलें उगा रहे हैं।
मुख्यमंत्री ठाकुर सुखविंद्र सिंह सुक्खू ने प्राकृतिक खेती पर विशेष बल देते हुए वित्तीय वर्ष 2024-25 के लिए 15 करोड़ रुपये के बजट का प्रावधान किया है। प्राकृतिक खेती की प्रासंगिकता को देखने के लिए योजना की शुरूआत के बाद प्रदेश में रसायनिक उर्वरकों व कीटनाशकों के प्रयोग के आकलन के लिए राष्ट्रीय कृषि विस्तार प्रबंधन संस्थान हैदराबाद और अकादमी ऑफ मैनेजमेंट स्टडीज लखनऊ द्वारा शोध किए गए हैं।
प्राकृतिक खेती करने से कृषि की लागत में औसतन 36 फीसदी की कमी आई है और उत्पादों के औसतन 8 फीसदी अधिक दाम मिले हैं। प्राकृतिक खेती कर रहे 75 फीसदी किसान-बागवान फसल विविधकरण की ओर अग्रसर हुए हैं।
प्रदेश सरकार ने आगामी दस वर्षों में राज्य को ‘समृद्ध और आत्मनिर्भर’ बनाने के लिए आत्मनिर्भर हिमाचल की परिकल्पना की है। किसानों के कल्याण को प्रमुख रखते हुए ‘समृद्ध किसान हिमाचल’ को पहले स्थान पर रखा गया है। प्रदेश सरकार ने रोजगार को बढ़ावा देने और किसानों की आय बढ़ाने के लिए 680 करोड़ रुपये की राजीव गांधी स्टार्ट-अप योजना के तीसरे चरण में एक नई योजना राजीव गांधी प्राकृतिक खेती स्टार्ट-अप योजना की शुरूआत की है।
इसके अतिरिक्त प्रदेश सरकार ने प्राकृतिक खेती करने वाले किसानों के उत्पादों को प्राथमिकता के आधार पर खरीदने के साथ पूरे देश में गेहूं और मक्का के लिए सबसे अधिक 40 और 30 रुपये का समर्थन मूल्य तय किया है। इसके तहत प्रत्येक प्राकृतिक खेती किसान परिवार से 20 क्विंटल तक अनाज खरीदा जाएगा। हाल ही में कृषि विभाग ने प्रदेश के 1,508 किसानों से 398 मीट्रिक टन मक्की की खरीद कर ‘हिम-भोग हिम प्राकृतिक’ मक्की आटा बाजार में उतारने के साथ प्राकृतिक उत्पादों के लिए ‘हिम प्राकृतिक खेती उत्पाद योजना’ की भी शुरूआत की है।
ग्रामीण अर्थव्यवस्था के सशक्तिकरण के लिए प्रदेश सरकार ने हाल ही में सात जिलों में बागवानी और सिंचाई परियोजनाओं के लिए 1,292 करोड़ रुपये की योजना शुरू की है।
हिमाचल दूध के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य तय करने वाला देश का पहला राज्य है जहां गाय का दूध 45 रुपये प्रति लीटर और भैंस का दूध 55 रुपये प्रति लीटर की दर पर खरीदा जा रहा है।
दत्तनगर में 50,000 लीटर प्रतिदिन की क्षमता के दूध प्रसंस्करण संयंत्र से 20,000 से अधिक डेयरी किसान लाभान्वित होंगे। इसके अलावा, कांगड़ा जिले के ढगवार में पूरी तरह से स्वचालित दूध और दूध उत्पाद प्रसंस्करण संयंत्र स्थापित किया जा रहा है।
कुल्लू, नाहन और नालागढ़ में 20,000 लीटर प्रतिदिन क्षमता वाले प्लांट स्थापित किए जाएंगे जबकि ऊना और हमीरपुर में आधुनिक मिल्क चिलिंग प्लांट की योजना बनाई जा रही है।
मिल्कफेड वर्तमान में प्रतिदिन 2 लाख लीटर दूध खरीद रहा है और एक अग्रणी पहल के रूप में ऊना जिले में बकरी का दूध 70 रुपये प्रति लीटर की दर पर खरीदा जा रहा है।
राज्य में दूध उत्पादन बढ़ाने के लिए 500 करोड़ रुपये की ‘हिम गंगा’ योजना शुरू की गई है। पिछले दो वर्षों में 26,000 बीपीएल किसानों को मवेशियों के चारे पर 50 प्रतिशत सब्सिडी मिली है जिससे डेयरी क्षेत्र को महत्वपूर्ण मदद मिली है।

सेब उत्पादकों के लिए यूनिवर्सल कार्टन की शुरूआत की गई है। मण्डी मध्यस्थता योजना के तहत बकाया भुगतानों को निपटाने के लिए 153 करोड़ रुपये वितरित किए गए हैं। इसके अतिरिक्त, सेब, आम और नींबू प्रजाति के फलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ाकर 12 रुपये किया गया है।
बाड़बंदी के लिए 70 प्रतिशत तक, अनाज, दलहन, तिलहन और चारा फसलों के लिए बीज पर 50 प्रतिशत और आलू, अदरक और हल्दी के बीज के लिए 25 प्रतिशत तक सब्सिडी दी जा रही है।
बीते दो वर्षों में जाइका योजना के तहत जागरूकता और क्षमता निर्माण कार्यक्रमों पर 96.15 करोड़ रुपये खर्च किए गए हैं, जिससे 50,000 से अधिक किसान लाभान्वित हुए हैं।

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