हिमाचल प्रदेश में बैन हो चुकी कॉटन कैंडी का उत्पादन और बिक्री बेरोकटोक ज्वालामुखी व आसपास के इलाके में जारी है। कॉटन कैंडी बच्चों के स्वास्थ्य से सीधा-सीधा खिलवाड़ है और कॉटन कैंडी का सेवन बच्चों को कैंसर की ओर भी धकेल सकता है। इस बात का खुलासा पूर्व में देश के कुछ राज्यों में की गई जांच में हुआ था। इसके बाद देश के कुछ राज्यों में सरकारों ने कॉटन कैण्डी के उत्पादन और बिक्री पर रोक लगा दी थी, लेकिन इतना सब होने के बाद भी यहां कॉटन कैण्डी का उत्पादन और बिक्री बेरोकटोक हो रही है।
खाद्य सुरक्षा विभाग ने पिछले दिनों हिमाचल प्रदेश के विभिन्न जिला से कॉटन कैंडी के सैंपल लिए गए थे ,जो की फेल पाए गए। उसके बाद प्रदेश सरकार ने कॉटन कैंडी को ही बैन कर दिया था।
कॉटन कैंडी बनाने के लिए चीनी तथा रंगों का इस्तेमाल किया जाता था. अमूमन देखा जाता था कि एक छोटी मशीन के माध्यम से कॉटन कैंडी निर्माण की प्रक्रिया पूरी की जाती है. कॉटन कैंडी खाने का क्रेज बच्चों में ज्यादा दिखाई देता हैं.
कॉटन कैण्डी का अविष्कार 1897 में अमेरिका के एक दंत चिकित्सक विलिसयम्स जॉन मोरिसन नाम के एक दंत चिकित्सक ने किया था। इसके करीब दस साल के बाद सेंट लुइस वर्ल्ड फेयर में इसे पहली बार प्रदर्शित किया गया और इसे फेयरी फ्लास नाम दिया गया। बाद में 1921 में इसका नाम बदलकर कॉटन कैण्डी किया किया। इसका कारण था कि यह रुई जैसी ही दिखाई देती है। हालांकि आस्ट्रेलिया में अभी भी इसे फेयरी फ्लास के नाम से ही जाना जाता है।